स्वामी रामकृष्ण परमहंस (फाल्गुन शुक्ल द्वितीया/जयन्ती) मानवता के पुजारी स्वामी रामकृष्ण परमहंस एक अद्भुत सन्त थे. हिन्दू धर्म में परमहंस की उपाधि उसे दी जाती है, जो समाधि की अन्तिम अवस्था में होता है. उनमें कईं प्रकार की सिद्धियाँ थीं लेकिन वे सिद्धियों के पार चले गए थे. भारतभूमि को हमेशा से ही ऐसे महान संतों और योगियों का सानिध्य मिला है जिन्होंने इसकी संस्कृति को एक सही दिशा देने में निर्णायक भूमिका निभाई है. चाहे वह वाल्मिकी हों या रामकृष्ण परमहंस सभी ने भारत के सामाजिक ढांचे को और भी स्वच्छ एवं सुदृढ़ बनाने की दिशा में सराहनीय कार्य किए हैं. रामकृष्ण परमहंस ही वह गुरू थे जिनकी शिक्षा ने विवेकानंद जी को विश्व सेवा के लिए प्रेरित किया था. उन्होंने अपना संपूर्ण जीवन दीन-दुखियों के उपकार में समर्पित कर दिया था. फाल्गुन मास के शुक्ल पक्ष की द्वितीया (18 फरवरी, 1836) को कामारपुकुर नामक स्थान पर बालक गदाधर चट्टोपाध्याय ने जन्म लेकर संत रामकृष्ण परमहंस के रूप में दक्षिणेश्वर मंदिर, कोलकाता में पुजारी