यूक्रेन में MBBS का सच―
कभी कश्मीर जाईये गली-गली मे डाॅक्टर और डेंटल सर्जन बैठे है हर मेडिकल स्टोर के अंदर बने केबिन मे एक डाॅक्टर साहब विराजमान मिलेंगें MBBS ड्रिग्री धारी ...…
कभी गुडगाँव में "मेदांता द मेडिसिटी" हो आईये बाकायदा हिजाबधारी लड़कियां और दाढ़ीयुक्त मोमिन डाॅक्टर मिलेंगे ...…
कभी मूड हो तो थोड़ी पड़ताल कर लेना सब के सब बांग्लादेश जाकर डाॅक्टरी पढ़े है बचे खुचे वुहान (चीन) या फिर यूक्रेन, जाॅर्जिया और रशियन फेडरेशन के देशों के मेडिकल काॅलेजों से ...…
कश्मीरियों में तो एक परम्परा ही बन गई है "हलाल डिग्री" लेने की जो केवल बांग्लादेश में मिलती है ये हलाल डिग्री वाले डाॅक्टर इतने एक्सपर्ट डाॅक्टर है कि बगैर MCI का एग्जाम पास किये प्रैक्टिस करते है कश्मीर में इंडिया के नाम से ही चिढ़ हो तो मेडिकल काउंसिल आफ इंडिया गई तेल लेने भारत सरकार तक चूँ ना करे ...…
बेखौफ बेलौस प्रेक्टिस करते है "बांग्लादेश" से हलाल डिग्री लेकर आये डाॅक्टर साहब राज्य सरकार भी सबसे ज्यादा वरीयता बांग्लादेश से डिग्री लेकर लौटे दढ़ियलों को ही देती है ...…
यही हाल यूक्रेन, जाॅर्जिया, रोमानिया, बुल्गारिया, रूस के डिग्रीधारियों का है कमाल तो ये है कि वहाँ मेडिकल की पढ़ाई स्थानीय भाषा में होती है न कि अंग्रेजी में सीधे M.D. की डिग्री मिलती है जो यहाँ एग्जाम पास करने के बाद MBBS के समकक्ष मानी जाती है और इसे लेने मे 7 साल लगते है पहला साल केवल लैंग्वेज सिखाई जाती है क्योंकि मेडिसिन की पढ़ाई का माध्यम केवल और केवल स्थानीय भाषा है ...…
अरे मेडिकल तो छोड़िये फाईटर एयरक्राफ्ट, पनडुब्बी के क्रू, नेवल नेविगेशन और एडमिरल गोर्शकोव (विक्रमादित्य) की ट्रेनिंग रूस में पाने वाले सैनिकों से पूछकर देखिये वही बता देंगें कि उनको ट्रैनिंग किस भाषा मे दी जाती है रूस और रशियन फेडरेशन के देशों में???
चलिये फिर से डाॅक्टरों की काबिलियत पर आते है तो जनाब इन डाॅक्टर साहब ने डिग्री प्राप्त कर ली MCI का छोटा सा दफ्तर है सेक्टर-8 द्वारका दिल्ली में मलेरिया इंस्टीट्यूट के बगल में मेडिकल काउंसिल का एग्जाम पास किया या नहीं किया कौन पूछने आता है इनसे?? किसी भी बी-ग्रेड सिटी में नर्सिंग होम खोलकर बैठ गये कौन सा मरीज इलाज से पहले डाॅक्टर की ड्रिगी चैक कर रहा है???
इलाके के थानेदार को क्या पड़ी है कि वो डाॅक्टर से मगजमारी करता फिरे हो गये डाॅगदर चल पडी डाॅगदरी दस दिन ICU का बिल बनाओ और रेफर कर दो घंटा किसी को फर्क नहीं पड़ता डाॅगदर को ना मरीज को इंसानी जिंदगी बहुत सस्ती है ना अपने देश में ...…
जरा सोचिये साल दर साल तीस हजार डाॅक्टर तो अकेले यूक्रेन से आ रहे है उसके बाद जाॅर्जिया, दस बीस हजार बांग्लादेश से, उतने ही चीन, रोमानिया, बुल्गारिया, हंगरी, कजाकिस्तान, ताजिकिस्तान, मालदोवा, उजबेकिस्तान जैसे देशों से आ रहे है फिर हम ये भी बोलते है कि डाॅक्टर कसाई है ऐसे लूट लिया ऐसे काट लिया ऐसे मेडिकल नेग्लीजेंसी के चलते मरीज मर गया ...…
जैसे एक राज्य में तो जमींदारों में मशहूर कहावते जन्म ले चुकी है ...…
एक किल्ला छोरी के ब्याह में बेच देंगें, दो किल्ले बेच देंगे छोरे को डॉक्टर बणाणे में, यूक्रेन या रूस से MBBS जो करवाणी है, अर फेर ये 5 किल्ले बेच के इसका नर्सिंग होम बण ज्यागा ...…
मै बहुत-सी फैमिलीज को जानता हूँ जो अपनी SUV लेकर सपरिवार छोरी को मेडिकल ऐट्रेंस एग्जाम दिलवाने हरियाणा से बैंगलोर, चेन्नई, गुवाहाटी तक गये है कहते है कि छोरी पेपर दे लेगी अर हम घूम लयांगे ...…
और बाद मे यही भारत जैसा देश मेडिकल प्रैक्टिस में डाॅक्टरों से नेकनीयती, शुचिता, ईमानदारी, सच्चाई, की उम्मीद भी करता है ...…
भाई ठगी, चालाकी, बेईमानी, जोड़ तोड़ और मक्कारी से नाम मात्र के डाॅक्टर बनने वाले वही सब तरीके तो अपनायेंगें ना???
काबिल होते तो यही डाॅक्टर बन लेते, एग्जाम पास कर लेते, किसी लायक नहीं थे, तभी तो जोड़-तोड, पैसे, संपर्को, दौड़ धूप और येन केण प्रकारेण डाॅक्टर बनने डोनेशन सीट पर बांग्लादेश, चीन, यूक्रेन, जाॅर्जिया, रोमानिया, कजाकिस्तान, ताजिकिस्तान से डाॅक्टर बनकर आये है ...…
अब सोच लो भाई क्योंकि जान है तुम्हारी पैसा है तुम्हारा बीमारी है तुम्हारी और डाॅक्टर है यूक्रेन/ बांग्लादेश का !!!!!!!!!
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