भारतीय मूल के अमेरिकी नागरिक पराग अग्रवाल- ट्विटर के मुख्य कार्यकारी अधिकारी (सीईओ-सर्वोच्च कर्मी) बन गए है इस नियुक्ति के साथ अब गूगल, माइक्रोसॉफ्ट, एडोबी, IBM, पालो आल्टो नेटवर्क्स जैसी टॉप आईटी कंपनियों की डोर भारतीय अमरीकियों ने संभाल ली है―
इस नियुक्ति पर विश्व की सबसे बड़ी कार कंपनी- टेस्ला के संस्थापक एलोन मस्क ने ट्वीट किया कि भारतीय प्रतिभा से अमेरिका को बहुत फायदा हो रहा है ...…
इसके अलावा मास्टरकार्ड, जर्मनी का Deutsche बैंक, पेप्सी, नोकिया इत्यदि कंपनियों के सीईओ भारतीय रह चुके हैं या है ...…
लगभग सभी भारतीयों ने भारत में पढ़ाई की बाद में अमेरिका में उच्च शिक्षा जारी रखी और फिर निजी क्षेत्र में नौकरी करते हुए शीर्ष पर पहुँच गए ...…
प्रश्न यह उठता है कि इन भारतीयों ने मार्क जुकेरबर्ग की तरह फेसबुक, ट्विटर, गूगल, स्नैपचैट जैसी कंपनी स्वयं क्यों नहीं बना ली? आखिरकार इन सभी कंपनियों का उदय पिछले 15 वर्षो में ही हुआ है जुकेरबर्ग ने फेसबुक की नींव हॉस्टल में डाली थी एप्पल कंप्यूटर एवं अमेजान गैराज में शुरू हुए थे आखिरकार ऐसी क्या कमी रह जाती है हम में???
कारण यह है कि हमारी शिक्षा व्यवस्था किसी भी थ्योरी, विचार, तथा घटनाओं पर गहन रूप से सोचना नहीं सिखाती किसी भी विषय के बारे में उत्सुकता होने के बाद भी हम केवल मतलब की पढ़ाई और रटाई करते है बिना अर्थ समझे सिर्फ परिभाषाएं रटी जाती थी और कुछ रटे हुए तर्क-वितर्क के माध्यम से उत्तर पुस्तिका भर दी जाती थी ...…
पढ़ाई का एक ही लक्ष्य होता है किसी भी तरह UPSC निकाल लेना UPSC न मिले तो कोई अन्य सरकारी नौकरी में लग जाना ...…
युवा वर्ष के शुरुआती वर्षों में रिस्क लेने की क्षमता होती है कुछ नया कर दिखाने का उत्साह होता है लेकिन सरकारी नौकरी का लक्ष्य ऐसे सभी अरमानों का गला घोट देती है चाहे उसको ज्वाइन करने में आप सफल हो जाएं या असफल फिर वह युवा एक बनी-बनाई कंपनी तो चला सकता है लेकिन एकदम नए उत्पाद के लिए एक नयी कंपनी नहीं खड़ी कर सकता क्योंकि उस उत्पाद की परिकल्पना करना उसकी क्षमता के बाहर है ...…
अगर किसी ने रिस्क लेकर उद्यम लगाना चाहा तो नियम-कानूनों एवं पूँजी के चक्कर में उसे हताश कर दिया जाता था आखिरकार कोंग्रेसियों ने एक ऐसी व्यवस्था का निर्माण किया था जिसमें निर्धनता उन्मूलन और सेकुलरिज्म के नाम पर अपने आप को, अपने नाते रिश्तेदारों, कुछ उद्यमियों और मित्रों को समृद्ध बना सकें अपनी समृद्धि को इन्होंने विकास और सम्पन्नता फैलाकर नहीं किया बल्कि जनता के पैसे को धोखे से और भ्रष्टाचार से अपनी ओर लूट कर किया ...…
तभी स्वतंत्रता के इतने वर्षों बाद भी समस्याएं सुरसा के मुंह की तरह सामने खड़ी रहती थी समाधान खोजने का कोई ईमानदार प्रयास नहीं किया जाता था क्योंकि उसके लिए आपको रटे-रटाए से अलग हटकर सोचना होगा ...…
लेकिन अब प्रधानमंत्री मोदी ने अंग्रेजों के समय के कई नियम-कानून समाप्त कर दिए कंप्लायंस बर्डन (compliance burden) - किसी संस्था को चलाने के लिए नियम-कानून के पालन एवं प्रशासनिक लागतों का बोझ काफी कम कर दिया है उदाहरण के लिए GST के कारण विभिन्न राज्यों में अलग-अलग करो को नहीं भरना होगा, कॉरपोरेट टैक्स कम कर दिया, श्रम कानूनों को आसान बना दिया, पूँजी की उपलब्धता आसान कर दी है, लॉजिस्टिक एवं ट्रांसपोर्टेशन हब से निर्यात-आयात सुगम हो गया, उद्यमियों की प्रशंसा की, उनका उत्साह वर्धन किया ...…
परिणाम यह हुआ कि केवल इस वर्ष में अब तक 40 नयी कंपनियों (स्टार्टअप) ने यूनिकॉर्न का स्टेटस (अर्थात एक बिलियन डॉलर या 75 सौ करोड़ रुपये की वैल्यू) प्राप्त कर लिया है जो चीन से कहीं अधिक है जबकि पिछले 10 वर्षो (2011-20) में केवल 40 स्टार्टअप्स ही यूनिकॉर्न बन पाए थे इन युनिकोर्न्स में लगभग 3.3 लाख लोगों को रोजगार दिया है ...…
दूसरे शब्दों में अब भारतीय युवा स्थापित नौकरी से कन्नी काटना शुरू कर दिए है रिस्क लेने लगे हैं ...…
ऐसा नहीं है है कि हर व्यक्ति उद्यम शुरू कर सकता है लेकिन अगर पांच प्रतिशत युवा भी सरकारी नौकरी से ध्यान हटाकर उद्यम की तरफ ध्यान दे तो वे बाकी युवाओं को जॉब देने की क्षमता रखते है ...…
और क्या पता कौन सा आईडिया जो भारत की भूमि से निकला हो कल का एप्पल, फेसबुक, गूगल, माइक्रोसॉफ्ट, उबेर, Airbnb, स्नैपचैट, WeWork बन जाए ...…
बस आवश्यकता है एक ऐसी सरकार की जो युवा उद्यमियों को प्रोत्साहित करती रहें
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