सूक्ष्म शरीर और दिव्य नेत्र
-संसार के सारे कार्य आंखो के द्वारा हो रहे है.। कल्पना करो अगर आंखे न होती तो यह संसार कैसा होता ?
-जब भी हम किसी दूसरे से 15 सेकेंड से ज्यादा आइ कान्न्टेक्ट करते है तो उसका असर हमारे पर और हमारा असर उस पर होता है ।
-अगर हमारे विचार सात्विक है और शक्तिशाली है और सामने वाले के नाकारात्मक विचार कम है तो उस पर हमारे विचारो का असर होगा और वह अच्छा बनने लगेगा ।
-अगर हमारे सात्विक विचार कम शक्तिशाली है और सामने वाले के नाकारात्मक विचार ज़्यादा शक्तिशाली है तो उस का प्रभाव हमारे पर होगा और हम नाकारात्मक काम करने को प्रेरित होगे ।
-इसलिये अनजान व्यक्ति से आंखें मिला कर बात नहीं करनी चाहिये । अगर करते है तो अपनी शक्ति को कमजोर कर रहे होते है ।
-नाकारात्मकता का ज़रा सा अंश भी हमारे सूक्ष्म दिव्य नेत्र को कमजोर करता है ।
-अगर हम दिव्य नेत्र को शक्तिशाली बनाना चाहते तो हमें अपने ईष्ट को कल्पना मे देखते हुये उसकी आंखो मे ध्यान लगाना चाहिये । इसका प्रभाव सूक्ष्म दिव्य नेत्र पर पड़ता है ।
-दूसरो को देखते हुये मन मे भृकुटी के बीच आंखो के पीछे बिंदू को देखो और परमात्मा के गुणों का सिमरन करो ।
-मन मे एक प्रकाश का बिंदू एक टक देखते रहो और स्थूल आंखो को झपकने मत दो इस से दिव्य नेत्र जागृत होगा । स्थूल आंखो की हलचल दिव्य नेत्र को प्रभावित करती है ।
-दूर दराज रहने वाले व्यक्तियों को कल्पना मे उनकी आंखो मे देख कर शांति की तरंगे पैदा करो ।
-हरेक व्यक्ति के प्रति सदा अपने दयालु रुप मे स्थित रहो तो आप का डाइरेक्ट दिव्य नेत्र कार्य करने लगेगा ।
-हर समय ऐसे समझो कि सारे हिसार शहर के निवासी आप के सामने है और उनको शांति या प्रेम की तरंगे दो । ऐसे विभिन्न शहरों दिल्ली, मुम्बई, बंगलोर, चंडीगढ़ या कोई और स्थान या देश को तरंगे देते रहो इस से दिव्य नेत्र शक्तिशाली बनता है ।
-कभी कभी चंद्रमा और दूसरे ग्रहों को मन मे देखो और उन्हे तरंगे दो । धीरे धीरे वहां की हलचल दिव्य नेत्र पकड़ने लगेगा ।
-ऐसे ही ब्रह्मा पूरी, विष्णु पुरी, शंकर पुरी, परम धाम को मन मे देखो और वहां पर वहां के निवासी क्या कर रहे है उन सब से शांति की तरंगे ग्रहण करो । इस से दिव्य नेत्र मे अभूतपूर्व परिवर्तन आता है
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