कानून वापसी बिल पारित―
लोकसभा में शीतकालीन सत्र के पहले दिन सोमवार को तीन कृषि कानूनों की वापसी से सम्बन्धित विधेयक पारित कर सरकार ने अपने वादे को पूरा कर दिया प्रधानमंत्री श्री नरेन्द्र मोदी ने गुरु पर्व के अवसर पर राष्ट्र के नाम अपने सम्बोधन में कृषि कानूनो को वापस लेने की घोषणा की थी और यह भी आश्वस्त किया था कि शीतकालीन सत्र में इसे प्राथमिकता के आधार पर पारित कर दिया जायगा ...…
केन्द्रीय कृषि मंत्री नरेन्द्र सिंह तोमर ने सदन में हंगामे के बीच विधेयक प्रस्तुत किया और यह पारित हो गया विपक्ष विधेयक पर चर्चा कराये जाने की मांग पर बेवजह अड़ा रहा कांग्रेस ने यह भी दलील दी कि 16 महीने पूर्व इन कानूनों का पारित होना अलोकतांत्रिक था वापसी का तरीका तो और भी अधिक अलोकतांत्रिक है ...…
विपक्ष वापसी से पहले इस पर चर्चा की मांग करता है *सदन में चर्चाएं तो होती हैं लेकिन जब सरकार ने इन कृषि कानूनों की वापसी की घोषणा कर दी तो फिर उस पर चर्चा कराने की मांग
कितना औचित्यपूर्ण है* यह भी एक प्रश्न है? किसान संघटन और विपक्षी दल इन कानूनों की वापसी की पुरजोर मांग करते रहे और इसके समर्थन में सड़क पर आन्दोलन लम्बे समय तक चलाये गये जब सरकार ने यह मांग स्वीकार कर ली तब चर्चा का कोई महत्व नहीं रह जाता इसमें सदन का बहुमूल्य समय ही बर्बाद होता ...…
ऐसी स्थिति में विपक्ष की मांग का औचित्य प्रतीत नहीं होता है एक दिन पूर्व कृषि कानूनों को वापस लेने में देर और किसानों से जुड़े मसले पर कांग्रेस ने संसद के बाहर प्रदर्शन भी किया था जिसका कोई मतलब नहीं है ...…
यह मात्र विपक्षी दलों के सियासी खेल है प्रधान मंत्री श्री नरेन्द्र मोदी ने सोमवार को संसद सत्र के पहले मीडिया को सम्बोधित करते हुए आश्वस्त किया कि सरकार हर विषय पर चर्चा करने के लिए तैयार है सरकार की नीतियों के खिलाफ आवाज उठे लेकिन सदन और स्पीकर की गरिमा का भी पूरा ध्यान रखें इसके बावजूद सदन में शोर शराबा और हंगामा किया जाना उचित नहीं है केवल विरोध करने के लिए विरोध का कोई मतलब नहीं है ...…
संसद के सुचारू संचालन में सत्ता और विपक्ष दोनों का रचनात्मक सहयोग आवश्यक है संसद लोकतंत्र का मंदिर है जिसकी गरिमा और पवित्रता का पूरा सम्मान करना हर राजनीतिक दल का कर्त्तव्य है !!!!!!!!!
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