प्रेम और अपवित्र विचार
-साँस रोक कर भगवान को याद करने से अपवित्र विचार रुक जाते हैं ।
-ऐसे ही कोई भी अन्य नाकारात्मक वत्ति जैसे क्रोध , अहंकार, ईर्ष्या या आलस्य आदि मन में उठने लगे तो तुरंत साँस रोक कर भगवान को याद करो तो वह वृत्ति ख़त्म हो जायेगी ।
-अपवित्र विचारो को ख़त्म करने की दूसरी विधि यह है कि जब भी आप किसी से मिलें , लिंग या पुलिंग, तो उसके माथे पर देखो । उस से आई कॉंटेक्ट नही करना । अगर हम किसी दूसरे से 20 सेकेंड से ज्यादा आई कॉंनटेक्ट करते हैं तो आप का उस पर प्रभाव पड़ रहा होता है या उस का प्रभाव तुम्हारे पर पड़ रहा होता है ।
-माथा आत्मा का अकाल तख्त है । माथे को न सर्दी लगती है न गर्मी लगती है ।
-माथे पर देखने से आकर्षण नही होता । आँखो से ऊपर लगभग दो इंच ऊँचाई पर माथे के बीचो बीच देखो । इस तरह देखने से सामने वाले को यह भी नही लगेगा कि आप उसको इग्नोर कर रहे है तथा आकर्षण भी नही होगा । माथे पर देखने से यह नही लगता कि यह मेल का माथा देख रहे है या फीमेल का ।
-अगर किसी व्यक्ति को आप मन में याद करते हैं या याद आता है तो भी मन से उसके माथे पर ही देखो । इस से अपवित्र विचार का खिंचाव नही होगा शरीर के किसी दूसरे हिस्से पर स्थूल में या सूक्ष्म में देखने से विचार अपवित्र हो सकते हैं ।
-अपवित्रता का कनेक्शन जीभ से भी है ।
-अगर आप का जीभ पर कंट्रोल नही है । आप की जीभ तरह तरह के व्यंजनों के पीछे लपकती है तो मन में अपवित्र संकल्प कभी रुकेगे नही ।
-अगर आप तेज गति से खाना खाते हैं अर्थात खाना निगलते हैं तो अपवित्र संकल्प रुकेंगे नही । अगर आप खाना प्यार से खाते हैं और चबा चबा कर खाते हैं तो आप का संकल्पों पर नियंत्रण रहेगा ।
-अगर आप तीखा बोलते हैं । बोलते ही जाते हैं । बहुत जल्दी क्रोधित हो जाते हैं तो अपवित्र विचार आप को उसी गति से डिस्ट्रब करेंगे ।
-अगर आपकी जबान बजार की चीजे खाने को लपकती है तो समझो अपवित्र विचार आप को वैसे ही सातायेगें
-अगर आप मन से भी अपवित्रता को जीतना चाहते हैं तो पहले जीभ के स्वाद को जीतो ।
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