सात सौ किसान मर गए ?
किधर मरे ? कब मरे ? कहाँ मरे ? क्यों मरे ?
यदि धरना स्थल पर मरे तो वहाँ कैसे मरे? गर्मी से मर नहीं सकते क्योंकि तुमने टेन्ट मे एसी लगवाया था। खाए बिना मर नहीं सकते, क्योंकि तुमने मेवा के हलवे से लेकर चिकन बिरयानी तक की व्यवस्था करवा रखी थी। बिना काम किए शरीर दर्द से भी नहीं मरे होंगे, क्योंकि तुमने मसाज मशीन लगवा रखा था। ठण्ड की भी कोई बात नहीं क्योंकि गर्म पानी के साथ रजाई, कम्बल, हीटर सबकी व्यवस्था थी। फिर मरे क्यों ? हो सकता है कुछ अधिक पी के मर गए हों और कुछ सूंघ के मर गए हों, लेकिन किसान के मरने का समाचार तो कहीं आया नहीं, बल्कि किसान के लोगों को मारने का समाचार आया। किसान ने जिन्दा जला दिया, किसान ने हाथ पैर काट कर मार दिया और तो और किसान ने बलात्कार किया। धूर्त डकैत! इसका उत्तर कौन देगा?
न कहीं सरकारी क्रय बंद हुआ था और न ही कहीं मण्डी फिर किसान को मरने की लालसा क्यों जगी? देश किसान के नाम पर यह बकवास एक वर्ष से अधिक समय से सुन रहा है। तुम किसान हो तो इसका अर्थ यह नहीं कि राष्ट्र के प्रति तुम्हारा कोई उत्तरदायित्व नहीं। कभी आतंकवादियों का समर्थन, तो कभी पाकिस्तान का समर्थन, कहीं कनाडा में भारत विरोधी नारा तो कहीं इंग्लैण्ड में भारत विरोधी नारा। देश के साथ गद्दारी का नाम किसान नहीं होता। वास्तविकता तो यह है कि तुम किसान नहीं गद्दार हो और तुम्हारा यह विदेश प्रायोजित आंदोलन भारत की कृषि अर्थ व्यवस्था की बढ़त को रोकने के लिए है।
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