दोस्तों, अक्सर हम लोग कहते सुनते है कि हमें कभी भी किसी की निंदा नहीं करनी चाहिए. कभी किसी की बुराई भी नहीं करनी चाहिए. मगर क्यों नहीं करनी चाहिए. यदि हमें यह पता लग जाए तो शायद हमारे मुहं से कभी किसी कि बुराई निकलेगी ही नहीं. आज हम आपको एक कहानी के माध्यम से यही बताने जा रहे कई कि बुराई का फल क्या होता है? क्यों हमारे बड़े बुजुर्ग ऐसा कहते है कि हमें किसी की बुराई नहीं करनी चाहिए.
किसी की निंदा या बुराई करने का क्या फल मिलता है?
एक बार की बात है, एक राजा ने फैसला किया कि वह हर दिन 100 अंधे लोगों को खीर खिलाएगा।
एक दिन सांप ने खीर वाले दूध में अपना मुंह डाला और दूध में जहर डाल दिया और जहरीली खीर खाकर 100 में से 100 अंधे लोगों की मौत हो गई।
राजा बहुत परेशान था कि मैं 100 आदमियों को मारने का पाप भोगुंगा।
राजा संकट में अपना राज्य छोड़कर वनों में भक्ति करने चला गया, ताकि इस पाप को क्षमा किया जा सके।
रास्ते में एक गाँव आया। राजा ने चौपाल पर बैठे लोगों से पूछा कि क्या इस गांव में कोई भक्ति परिवार है? ताकि रात उनके घर में गुजारी जा सके।
चौपाल में बैठे लोगों ने बताया कि इस गांव में दो बहनें और भाई रहते हैं जो बहुत सारी बंदगी करते हैं. राजा रात को उनके घर पर रहा।
सुबह राजा की नींद खुली तो लड़की सिमरन पर बैठी थी। पहले यह लड़की की दिनचर्या थी कि वह दिन खत्म होने से पहले सिमरन से उठकर नाश्ता बनाती थी।
लेकिन उस दिन लड़की काफी देर तक सिमरन पर बैठी रही।
जब लड़की सिमरन से उठी तो उसके भाई ने कहा कि दीदी, तुम इतनी देर से, अपने घर पर आज अथिति भी आये हुए है।
नाश्ता करने के बाद उसे जाना है। तुम्हें सिमरन से जल्दी उठ जाना चाहिए था।
तो लड़की ने जवाब दिया कि भाई, ऐसा हुआ कि एक मामला बहुत उलझा हुआ था।
धर्मराज को एक जटिल स्थिति पर निर्णय लेना था और मैं उस निर्णय को सुनने के लिए रुक गई, इसलिए मैं बहुत देर तक सिमरन करती रही।
उसके भाई ने पूछा क्या बात है। तो लड़की ने बताया कि ऐसे राज्य के राजा द्वारा अंधे लोगों को खीर खिला देने से 100 लोग मर गए ।
दरअसल सांप के दूध में जहर डालने से 100 अंधे लोगों की मौत हो गई।
अब धर्मराज को समझ नहीं आ रहा है कि अंधे लोगों की मौत के लिए राजा को दोषी ठहराया जाए, सांप को या दूध को नंगा करने वाले रसोइए को।
राजा भी सुन रहा था। राजा को उससे जुड़ी बात सुनने में दिलचस्पी हुई और उसने लड़की से पूछा कि फिर क्या फैसला हुआ?
लड़की ने बताया कि अभी कोई फैसला नहीं हुआ है।
राजा ने पूछा कि क्या मैं एक रात और तुम्हारे घर रुक सकता हूँ?
दोनों बहनों और भाइयों ने खुशी-खुशी उसे हाँ कह दी।
राजा अगले दिन रुके, लेकिन चौपाल पर बैठे लोग दिन भर इसी बात पर चर्चा करते रहे।
कल जो व्यक्ति हमारे गाँव में रात्रि विश्राम के लिए आया था और कोई भक्ति भाव से घर माँग रहा था।
उनकी भक्ति का नाटक सामने आया है। रात बिताने के बाद वह नहीं गया क्योंकि युवती को देखकर उस व्यक्ति की नीयत गलत हो गयी थी।
तो वह उस खूबसूरत और जवान लड़की के घर में जरूर रहेगा वरना लड़की को लेकर भाग जाएगा।
दिन भर चौपाल में राजा की निंदा होती रही।
अगली सुबह लड़की फिर सिमरन पर बैठ गई और नियमित समय के अनुसार सिमरन से उठ गई।
राजा ने पूछा.. "बेटी, अंधे लोगों को मारने का पाप किसने महसूस किया?"
लड़की ने बताया कि.. "वो पाप हमारे गांव की चौपाल पर बैठे लोगों ने छीन लिया।"
निंदा करने में क्या नुकसान है। निंदा करने वाला हमेशा दूसरों के पापों को अपने सिर पर ढोता है और दूसरों के किए हुए पापों का फल भी भोगता है। इसलिए हमें हमेशा निंदा से बचना चाहिए।
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